कासगंज। Kasganj News: सिढ़पुरा क्षेत्र के एक गांव की वह छोटी सी झोपड़ी आज अन्याय और उत्पीड़न के विरुद्ध एक प्रतीक बन गई है। इस झोपड़ी में रहने वाला परिवार अपनी छोटी बिटिया के साथ हुई अश्लील हरकत की लड़ाई चार वर्ष से न्यायालय में लड़ रहा है। इस बीच मार डालने की धमकियां मिलीं। डर के मारे कई बार काम पर नहीं गए। भूख से भी सब्र किया। मगर, हाई कोर्ट में जैसे हिम्मत ही हार बैठे।
न्यायाधीश ने निजी अंग को छूना पॉक्सो में अपराध ही नहीं माना। लगा कि जब कुछ खत्म हो गया। मगर, न्याय की यह आवाज सुप्रीम कानों तक पहुंच गई। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर संज्ञान लिया है। न्याय की नई किरण जागी है। घटना 10 नवंबर 2021 की है।
थाना सिढ़पुरा क्षेत्र की रहने वाली 14 वर्षीय (घटना के समय) पीड़िता अपनी मां के साथ घर जा रही थी। रास्ते में गांव ब्रिसिंगपुर के पवन और उतरना के आकाश ने बेटी को बाग में खींच लिया। अश्लील हरकतें कर दुष्कर्म का प्रयास किया। आरोपित मौसेरे भाई हैं। इस मामले में जब पुलिस ने सुनवाई नहीं की तो परिवार अदालत पहुंचा। 12 जनवरी 2022 को परिवाद दर्ज कराया।
सुप्रीम कोर्ट ने लिया मामले का संज्ञान
अदालत ने दोनों आरोपितों को तलब किया तो उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी। हाल ही में हाई कोर्ट ने इस मामले में निजी अंग छूने और पाजामे का नाड़ा तोड़ने को दुष्कर्म नहीं माना। तमाम आलोचना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसका संज्ञान लिया है। इसके बाद से परिवार दिल्ली चला गया है।
बेहद गरीब है पीड़ित परिवार
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद परिवार को अब न्याय की उम्मीद जागी है। गांव के लोग भी सुप्रीम निर्णय से खुश नजर आ रहे हैं। इस परिवार के लिए न्याय की यह लड़ाई इतनी आसान नहीं रही है। पीड़ित का परिवार बेहद गरीब है। रहने के लिए घर के नाम पर एक टूटी झोपड़ी है। पीड़िता दो बहनें और चार भाई हैं। मजदूरी करके गुजर-बसर करते हैं। दो भाई दिल्ली में मजदूरी करते हैं।
आरोपितों ने परिवार का जीना किया मुश्किल
अदालत में परिवाद दर्ज होने के बाद से ही आरोपितों ने पीड़ित परिवार का जीना मुश्किल कर दिया। आए दिन घर पर असलहा लेकर पहुंचते थे, जान से मारने की धमकी देते थे। कई बार रास्ता रोका। दबाव बनाया कि मामला वापस ले लें, मगर परिवार झुका नहीं। केस लड़ने के लिए परिवार के पास पैसे नहीं थे तो कासगंज की एक महिला सरोज आगे आईं। परिवार को पैसे भी दिए और कासगंज से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पैरवी भी की। दिल्ली में जस्ट राइट्स फार चिल्ड्रन एनजीओ ने कानूनी सहायता दिलाई। तब इस परिवार को संबल मिला।
विधिक दृष्टिकोण का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक; रेनू
राज्य महिला आयोग की सदस्य रेनू गौड़ ने इस मामले में बताया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दुष्कर्म के प्रयास की परिभाषा की सीमित रूप से व्याख्या की है। यह विधिक रूप से दोषपूर्ण है और महिला सुरक्षा की भावना के विरुद्ध भी है। न्याय पालिका को चाहिए कि वह विधिक संरचना की शक्ति के माध्यम से महिलाओं की अस्मिता और अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप सुधारात्मक कदम है, जो महिला की सुरक्षा और न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण दृष्टांत स्थापित करता है। महिला आयोग पूर्ण समर्थन करता है।
