**5 हजार साल पुराने पिरामिड सदियों से वैज्ञानिकों के लिए पहेली बने हुए हैं. इसमें सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर उस जमाने में विशाल चट्टानें कैसे उठाकर पिरामिड बनाए गए थे. जबकि इतना वजन उठाने की काबिलियत आधुनिक तकनीकों ने कुछ दशक पहले ही हासिल की कई थीं. कई लोगों को लगता है कि अब तक जो अनुमान वैज्ञानिक लगाते रहे हैं, वही सही है. यानी कि लीवर और अन्य उन्नत तकनीक की मदद से यह सब मुमकिन हुआ था. लेकिन नई रिसर्च ने दावा किया है कि ऐसा किसी और तकनीक से संभव हो सका था. उस समय तकनीक के साथ ही मिस्र वासियों ने बाढ़ के पानी की शक्ति की मदद ली थी.
अलग ही तकनीक का इस्तेमाल
फ्रेंच सीईए पेलियोटेकनिक इंस्टीट्यूट के जेवियर्स लैंड्रयू का कहना है कि उस दौर के मिस्रवासियों ने पास की नहरों के पानी की हाइड्रॉलिक शक्ति का उपयोग कर विशाल पत्थरों को उठाया होगा. अगर यह सच साबित होता है, तो 2680 ईसा पूर्व पहले बना जोसर का पिरामिड इस तरह की तकनीक से बना पहला स्मारक होगा और उन्होंने जैसा पहले समझा रहा था, उससे कहीं कम प्रयासों में विशाल पत्थर उठाए होंगे.
पानी की ताकत का इस्तेमाल
रिसर्च में विस्तार से बताया गया है कि यह काम मिस्रवासियों ने कैसे किया होगा. इसके मुताबिक स्टॉप डैम में बाढ़ का पानी जमा कर लिया जाता था जिससे पानी में ही डूब कर हलके हो कर अपने आप ही ऊंचे उठ जाते थे और फिर उन्हें पम्पिंग के जरिए जरूरत की जगहों पर पहुंचा दिया जाता था.

उन्नत किस्म की तकनीकें
शोधकर्ताओं का मानना है कि पिरामिड के पास ही जरूर पानी को छाने की कोई व्यवस्था होगी जिससे पाइप में पानी जाने के साथ मिट्टी ना जा सके. उन्होंने इसे “ज्वालामुखी निर्माण” तकनीक कहा जिसमें बड़े बड़े पत्थर उसी तरह पानी के दबाव से ऊपर आते होंगे जैसे कि ज्वालामुखी लावा जमीन से ऊपर आता है. उन्होंने माना का मिस्र में उस जमाने में भी बहुत ही उन्नत किस्म की तकनीकें थीं.
हाल के समय में हुए शोधों ने साफ किया है कि मिस्र के पिरामिड केवल कब्र ही नहीं थे बल्कि ये एक तरह का ऊर्जा के ग्रिड की तरह काम करते थे और संभव है कि उनमें से ऊर्जा का उत्पादन होता था जैसा कि हम आज बिजली का करते हैं. वहीं यह भी दावा किया जाता है कि पिरामिडों के नीचे बहुत बड़े शहर हुआ करते होंगे. उन्होंने एक पिरामिड के 648 मीटर नीचे कुछ खास तरह के चेम्बर भी खोजे हैं.**